सुधा मूर्ति जीवनी - Biography of Sudha Murthy in Hindi Jivani Published By : upscgk.com सुधा मूर्ति इन्फोसिस फाउंडेशन के संस्थापक एन. आर. नारायणमूर्ति की पत्नी एवं प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता हैं। कुछ लोग महान् लक्ष्यों को हासिल करने का मकसद लेकर जिंदगी जीते हैं लेकिन सुधा मूर्ति एक ऐसी शख्सियत हैं जो जिंदगी को सादगी और दानिशमंदी के साथ जीने में यकीन रखती हैं और यही ‘सादगी और मन की उदारता’ उन्हें इस मुकाम पर ले आयी है जिसे देखने के लिए लोगों को आसमान तक नजरें बुलंद करनी पड़ती हैं। उद्योग जगत में सफलता की नयी कहानी लिखने वाली आई टी कंपनी इन्फोसिस के इन्फोसिस फाउंडेशन की अध्यक्षा सुधा मूर्ति की जिंदगी मेहनत और मशक्कत की अद्भुत कहानी है। सुधा मूर्ति का जन्म 19 अगस्त 1950 में उत्तरी कर्नाटक में शिगांव में हुआ था. विवाह से पहले उनका नाम सुधा कुलकर्णी था. उन्होंने बी.वी.बी.कालेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी’, हुबली से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की उपाधि ग्रहण की. वे राज्य में प्रथम आई, जिसके लिए उन्हें कर्नाटक के मुख्यमंत्री से एक रजत पदक प्राप्त हुआ. सन 1974 में उन्होंने अध्ययन में और भी उन्नति की, जब उन्होंने ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस’ से कंप्यूटर साइंस में मास्टर्स डिग्री ग्रहण की. उन्होंने अपने वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त किया और ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स ‘से इस उपलब्धि के लिए उन्हें स्वर्ण पदक मिला. वे एक सामाजिक कार्यकर्ता, इंजीनियर, एक संवेदनशील शिक्षक तथा एक अत्यंत कुशल लेखिका भी हैं. अन्य कामों के साथ-साथ उन्होंने कर्नाटक में सभी सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर तथा पुस्तकालय सुविधाएँ मुहैया करने का भी कदम उठाया है. वे कंप्यूटर साइंस भी पढ़ाती हैं तथा कथा-साहित्य लेखन भी करती हैं. उन्होंने ‘डालर बहू ‘नाम से कन्नड़ भाषा में एक पुस्तक लिखी थी, कन्नड़ भाषा में जिसका अर्थ होता है ’डालर पुत्र-वधू’ बाद में ऐसे अंग्रेजी में अनूदित किया गया और ऐसे ‘डालर बहू’ शीर्षक दिया गया. सन 2001 में इस पुस्तक पर आधारित एक टी.वी.धारावाहिक भी बना. सन 1974 से सन 1981 तक वे पुणे में रहीं और उसके बाद बंबई चली गई. स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने जे.आर. डी.टाटा को पोस्टकार्ड लिखा था और उसमें यह शिकायत की थी कि ‘टाटा मोटर्स’ में लिंग पक्षपात किया जाता है, क्योंकि वहां केवल पुरूषों को ही नौकरी दी जाती है. इस शिकायत के कारण ‘टाटा मोटर्स’ के अधिकारीयों ने उन्हें इस विषय पर लंबी चर्चा के लिए बुलाया, सुधा ने ‘टेल्को’ में एक ग्रेजुएट ट्रेनी के रूप में अपना कैरियर आरंभ किया सुधाजी जब पुणे मै जॉब कर रही थी तो उनकी मुलाकात नारायण मूर्ती से हुई और बादमे उन दोनोंने शादी भी की । सुधाजी और नारायणजी मूर्ति ( Sudha And Narayan Murthy) को 2 बच्चे है, एक लड़का और एक लड़की । नारायण मूर्ति जी अपना खुद का कारोबार करना चाहते थे लेकिन पैसे उनके पास नहीं थे । तो उन्होंने उनकी यह सोच सुधा जीके सामने रखी तो सुधाजीने उनके यह सोच को बढ़ावा देते हुये बिज़नस शुरू करने को कहा और उनके पास जो उनकी जमा कुंजी थी 10000 वो नारायण मूर्ती को दी । नारायण मूर्ति ने उस छोटी सी प्रारंभिक राशि से ‘ इंफोसिस ‘ (Infosys) की शुरूआत की , जो सुधाजी ने दुःख-विपत्ति के समय के लिए बचाकर रखी थी । नारायण मूर्ति बड़े गर्व से बताते हैं कि यह उसी की बची हुई धनराशी थी, जो बंगलोर में ‘ इंफोसिस ‘ स्थापित करने में सहायक बनी । प्रत्येक भूमिका में सफलता का सार सदैव एक ही रहा है, सुधा कहती हैं – “आप जो भी काम करें, अच्छी तरह से करें. प्रत्येक कार्य में मेरा उद्देश्य एक ही रहा है – जब आप एक अधीनस्थ हों, तो अपने व्यवसाय के प्रति ईमानदार और निष्ठावान रहें तथा व्यावसायिक बनें, लेकिन जब आप बॉस की हैसियत में हों, अपने अधीनस्थों का ध्यान रखें ठीक उसी तरह, जैसे जब बच्चे घर पर हों, माँ को उनके साथ होना चाहिए, क्योंकि उन्हें माँ की जरूरत होती है” । सुधाजी को 2006 मै पद्मश्री पुरस्कार से सन्मानित किया गया है । उन्हें सन 2000 मै ‘राज्यप्रष्टि’ अवार्ड साहित्य और समाजसेवा के लिए प्रदान किया है । शिक्षा शिक्षा समाप्ति के बाद सुधा मूर्ति ने सबसे पहले ग्रेजुएट प्रशिक्षु के तौर पर टाटा कंपनी और बाद में दी वालचंद ग्रुप आफ इंडस्ट्रीज में काम किया। कम्प्यूटर साइंस के क्षेत्र में उन्हें महिलाओं के लिए महारानी लक्ष्मी अम्मानी कालेज की स्थापना करने का श्रेय जाता है जो आज बेंगलूर यूनिवर्सिटी के कम्प्यूटर साइंस विभाग के तहत बेहद प्रतिष्ठित कालेज का दर्जा रखता है। महिला अधिकारों की समानता के लिए भी सुधा मूर्ति ने बेहद काम किया है। इस संबंध में एक घटना उल्लेखनीय है। उस जमाने में टाटा मोटर्स में केवल पुरुषों को भर्ती करने की नीति थी जिसे लेकर सुधा मूर्ति ने जेआरडी टाटा को एक पोस्टकार्ड भेजा। इसका असर यह हुआ कि टाटा मोटर्स ने उन्हें विशेष साक्षात्कार के लिए बुलाया और वह टाटा मोटर्स (तत्कालीन टेल्को) में चयनित होने वाली पहली महिला इंजीनियर बनीं। सुधा मूर्ति एक बेहद प्रभावशाली लेखिका भी हैं और उन्होंने आम आदमी की पीड़ाओं को अभिव्यक्ति देते हुए आठ उपन्यास भी लिखे हैं प्रकाशित साहित्य अस्तित्व आजीच्या पोतडीतील गोष्टी आयुष्याचे धडे गिरवताना द ओल्ड मॅन अॅन्ड हिज गॉड (अंग्रेजी) बकुळ गोष्टी माणसांच्ता जेन्टली फॉल्स द बकुला (अंग्रेजी) डॉलर बहू (इंग्रजी), (मराठी) तीन हजार टाके (मूळ इंग्रजी, ’थ्री थाउजंड स्टिचेस’; मराठी अनुवाद लीना सोहोनी) थैलीभर गोष्टी परिधी (कन्नड) परीघ (मराठी) पितृऋण पुण्यभूमी भारत द मॅजिक ड्रम अॅन्ड द अदर फेव्हरिट स्टोरीज (अंग्रेजी) महाश्वेता (कन्नड व अंग्रेजी) वाइज अॅन्ड अदरवाइज (अंग्रेजी), (मराठी) सामान्यांतले असामान्य सुकेशिनी हाउ आय टॉट माय ग्रँडमदर टु रीड अॅन्ड अदर स्टोरीज (अंग्रेजी)