कार्ल मार्क्स जीवनी - Biography of Karl Marx in Hindi Jivani Published By : upscgk.com कार्ल मार्क्स द्वारा समाज, अर्थशास्त्र और राजनीती के विषय में बताई गयी बातो को अक्सर मार्क्सवाद कहा जाता था – उनके अनुसार मानवी समाज विविध समुदाय में संघर्ष के साथ आगे बढ़ रहा है: जिनमे प्रबल समुदाय के बीच द्वन्द है और जो उत्पादित और काम करने वाले समुदाय पर नियंत्रण रखते है, इस समुदाय के लोग खुद को मजदूरी के बदले में बेचते है। परकीकरण, महत्त्व, वस्तु के जादू-टोन में विश्वास रखना और अपने गुणों को विकसित करने जैसे कई तथ्यों पर मार्क्स ने अपने विचार प्रकट किये है। मार्क्स ने मजदूरो के बीच किये जाने वाले भेदभाव पर भी अपने विचार प्रकट किये है। इसके साथ ही मार्क्स ने समाज की राजनितिक परिस्थति के बारे में भी अपनी थ्योरी (विचार प्रकट करना) दी है। इसके साथ ही मार्क्स ने देश में मानवी स्वाभाव और आर्थिक मजबूती को लेकर भी अपनी थ्योरी बताई है। कार्ल मार्क्स के इन विचारो ने लोगो के मन में काफी प्रभाव डाला और इसका परिणाम हमें विकास के रूप में दिखाई देने लगा। पूँजी मेहनतकशों की तहरीक में एक नए तूफ़ान की पेशबीनी करते हुए मार्क्स ने कोशिश की कि अपनी अर्थशास्त्रीय रचनाएँ करने की रफ़्तार तेज़ कर दे। अठारह माह की ताख़ीर के बाद जब उस ने अपने अर्थशास्त्रीय अध्ययन का फिर से आग़ाज़ किया तो उस ने इस रचना को अज नए सिरे से तर्तीब देने का फ़ैसला किया। और उस को 1859 में प्रकाशित जुर क्रिटिक दर पोलिटिशेन एकानामी में हिस्से के रूप में ना छापा जाये, बल्कि ये एक अलग किताब हो। 1862 में उस ने ईल कजलमीन को मतला किया कि इस का नाम द कैपिटल और तहती नाम राजनीतिक अर्थव्यवस्था की आलोचना होगा। द कैपिटल इंतिहाई मुश्किल हालात में लिखी गई। अमरीकी ख़ानाजंगी की वजह से मार्क्स अपनी आमदनी का बड़ा ज़रीया खो चुका था। अब वो न्यूयार्क के रोज़नामा द ट्रिब्यून के लिए नहीं लिख सकता था। उस के बाल बच्चों के लिए इंतिहाई मुश्किलों का ज़माना फिर आ गया। ऐसी सूरत-ए-हाल में अगर एंगलज़ की तरफ़ से मुतवातिर और बेग़रज़ माली इमदाद ना मिलती तो मार्क्स कैपिटल की तकमील ना कर सकता। कैपिटल में कार्ल मार्क्स का प्रस्ताव है कि पूंजीवाद के प्रेरित बल श्रम, जिसका काम अवैतनिक लाभ और अधिशेष मूल्य के परम स्रोत के शोषण करने में है। 1848 में मार्क्स ने पुन: कोलोन में 'नेवे राइनिशे जीतुंग' का संपादन प्रारंभ किया और उसके माध्यम से जर्मनी को समाजवादी क्रांति का संदेश देना आरंभ किया। 1849 में इसी अपराघ में वह प्रशा से निष्कासित हुआ। वह पेरिस होते हुए लंदन चला गया जीवन पर्यंत वहीं रहा। लंदन में सबसे पहले उसने 'कम्युनिस्ट लीग' की स्थापना का प्रयास किया, किंतु उसमें फूट पड़ गई। अंत में मार्क्स को उसे भंग कर देना पड़ा। उसका 'नेवे राइनिश जीतुंग' भी केवल छह अंको में निकल कर बंद हो गया। 1859 में मार्क्स ने अपने अर्थशास्त्रीय अध्ययन के निष्कर्ष 'जुर क्रिटिक दर पोलिटिशेन एकानामी' नामक पुस्तक में प्रकाशित किये। यह पुस्तक मार्क्स की उस बृहत्तर योजना का एक भाग थी, जो उसने संपुर्ण राजनीतिक अर्थशास्त्र पर लिखने के लिए बनाई थी। किंतु कुछ ही दिनो में उसे लगा कि उपलब्ध साम्रगी उसकी योजना में पूर्ण रूपेण सहायक नहीं हो सकती। अत: उसने अपनी योजना में परिवर्तन करके नए सिरे से लिखना आंरभ किया और उसका प्रथम भाग 1867 में दास कैपिटल (द कैपिटल, हिंदी में पूंजी शीर्षक से प्रगति प्रकाशन मास्को से चार भागों में) के नाम से प्रकाशित किया। 'द कैपिटल' के शेष भाग मार्क्स की मृत्यु के बाद एंजेल्स ने संपादित करके प्रकाशित किए। 'वर्गसंघर्ष' का सिद्धांत मार्क्स के 'वैज्ञानिक समाजवाद' का मेरूदंड है। इसका विस्तार करते हुए उसने इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या और बेशी मूल्य (सरप्लस वैल्यू) के सिद्धांत की स्थापनाएँ कीं। मार्क्स के सारे आर्थिक और राजनीतिक निष्कर्ष इन्हीं स्थापनाओं पर आधारित हैं। कार्ल मार्क्स की मृत्यु – दिसम्बर 1881 में अपनी पत्नी की मृत्यु हो जाने के बाद कार्ल मार्क्स को तक़रीबन 15 महीने तक बीमारी ने घेर रखा था। और कुछ समय बाद ही उनके फेफड़ो में सुजन और पशार्वशुल की समस्या होने लगी जिससे लन्दन में 14 मार्च 1883 (उम्र 64 साल) को ही उनकी मृत्यु हो गयी थी। नागरिकताहिन होते हुए ही उनकी मृत्यु हो गयी थी, लन्दन में ही उनके परिवारजनों और दोस्तों ने कार्ल मार्क्स के शरीर को 17 मार्च 1883 को लन्दन के ही हाईगेट सिमेट्री में दफनाया था। अनमोल विचार · दुनिया के मजदूरों के पास अपनी जंजीर के अलावा खोने के लिए कुछ भी नहीं है, दुनिया के मजदूरों एक हो. · समाज व्यक्तियों से मिलकर नहीं बनता है बल्कि उनके अंतर्संबंधों का योग होता है, इन्हीं संबंधों के भीतर ये व्यक्ति खड़े होते हैं. · औद्योगिक रूप से अधिक विकसित देश, कम विकसित की तुलना में, अपने स्वयं के भविष्य की छवि दिखाते हैं. · पूंजीवादी उत्पादन इसलिए प्रौद्योगिकी विकसित करता है, और विभिन्न प्रक्रियाओं को एक पूर्ण समाज के रूप में संयोजित करता है, केवल संपत्ति के मूल स्रातों जमीन और मजदूर की जमीन खोदकर. · जमींदार, सभी अन्य लोगों की तरह, वैसी फसल काटना पसंद करते हैं जिसे कभी बोया ही नहीं. · इतिहास खुद को दोहराता है पहली त्रासदी के रूप में, दूसरा प्रहसन के रूप में. · लोकतंत्र समाजवाद का मार्ग होता है . · कई उपयोगी चीजों का उत्पादन कई बेकार लोगों को भी उत्पन्न करता है. · संयोग से निपटने के लिए धर्म मानव मन की नपुंसकता है जिसे वह नहीं समझ सकता. · पूंजी मृत श्रम है जो पिशाच की तरह है , जो केवल श्रम चूसकर ही जिन्दा रहता है और जितना अधिक जीता है उतना श्रम चूसता है.