शाहजहाँ जीवनी - Biography of Shah Jahan in Hindi Jivani Published By : upscgk.com अपने पराक्रमो से आदिलशाह और निजामशाह के प्रस्थापित वर्चस्वो को मु तोड़ जवाब देकर सफलता मिलाने वाला राजा के रूप में शाहजहाँ की पहचान होती है। वैसेही खुदकी रसिकता को जपते हुये कलाकारों के गुणों को प्रोत्साहन देने वाला और ताजमहल जैसी अप्रतिम वास्तु खड़ी करने वाला ये राजा था। पारसी भाषा, वाड़:मय, इतिहास, वैदिकशास्त्र, राज्यशास्त्र, भूगोल, धर्म, युद्ध और राज्यकारभार की शिक्षा शहाजहान उर्फ राजपुत्र खुर्रम इनको मिली। इ.स. 1612 में अर्जुमंद बानू बेगम उर्फ मुमताज़ महल इनके साथ विवाह हुवा। उनके विवाह का उन्हें राजकारण में बहोत उपयोग हुवा। शाहजहाँ बहोत पराक्रमी थे। आदिलशहा, कुतुबशहा ये दोनों भी उनके शरण आये। निजामशाह की तरफ से अकेले शहाजी भोसले ने शाहजहाँ से संघर्ष किया। लेकिन शहाजहान के बहोत आक्रमण के वजह से शहाजी भोसले हारकर निजामशाही खतम हुयी। भारत के दुश्मन कम हो जाने के बाद शहाजहान की नजर मध्य आशिया के समरकंद के तरफ गयी। लेकिन 1639-48 इस समय में बहोत खर्चा करके भी वो समरकंद पर जीत हासिल कर नहीं सके। शाहजहाँ के हरम में ८००० रखैलें थीं जो उसे उसके पिता जहाँगीर से विरासत में मिली थी। उसने बाप की सम्पत्ति को और बढ़ाया। उसने हरम की महिलाओं की व्यापक छाँट की तथा बुढ़ियाओं को भगा कर और अन्य हिन्दू परिवारों से बलात लाकर हरम को बढ़ाता ही रहा।”(अकबर दी ग्रेट मुगल : वी स्मिथ, पृष्ठ ३५९) कहते हैं कि उन्हीं भगायी गयी महिलाओं से दिल्ली का रेडलाइट एरिया जी.बी. रोड गुलजार हुआ था और वहाँ इस धंधे की शुरूआत हुई थी। जबरन अगवा की हुई हिन्दू महिलाओं की यौन-गुलामी और यौन व्यापार को शाहजहाँ प्रश्रय देता था, और अक्सर अपने मंत्रियों और सम्बन्धियों को पुरस्कार स्वरूप अनेकों हिन्दू महिलाओं को उपहार में दिया करता था। यह नर पशु,यौनाचार के प्रति इतना आकर्षित और उत्साही था,कि हिन्दू महिलाओं का मीना बाजार लगाया करता था,यहाँ तक कि अपने महल में भी। सुप्रसिद्ध यूरोपीय यात्री फ्रांकोइस बर्नियर ने इस विषय में टिप्पणी की थी कि, ”महल में बार-बार लगने वाले मीना बाजार, जहाँ अगवा कर लाई हुई सैकड़ों हिन्दू महिलाओं का, क्रय-विक्रय हुआ करता था,राज्य द्वारा बड़ी संख्या में नाचने वाली लड़कियों की व्यवस्था,और नपुसंक बनाये गये सैकड़ों लड़कों की हरमों में उपस्थिती, शाहजहाँ की अनंत वासना के समाधान के लिए ही थी। (टे्रविल्स इन दी मुगल ऐम्पायर- फ्रान्कोइसबर्नियर :पुनः लिखित वी. स्मिथ, औक्सफोर्ड १९३४) शाहजहाँ को प्रेम की मिसाल के रूप पेश किया जाता रहा है और किया भी क्यों न जाए। ८००० औरतों को अपने हरम में रखने वाला अगर किसी एक में ज्यादा रुचि दिखाए तो वो उसका प्यार ही कहा जाएगा।आप यह जानकर हैरान हो जायेंगे शाहजहाँ के समय में हुए विद्रोह : लगभग सभी मुग़ल शासकों के शासनकाल में विद्रोह हुए थे। शाहजहाँ का शासनकाल भी इन विद्रोहों से अछूता नहीं रहा। उसके समय के निम्नलिखित विद्रोह प्रमुख थे- बुन्देलखण्ड का विद्रोह (1628-1636ई.) : वीरसिंह बुन्देला के पुत्र जुझार सिंह ने प्रजा पर कड़ाई कर बहुत-सा धन एकत्र कर लिया था। एकत्र धन की जाँच न करवाने के कारण शाहजहाँ ने उसके ऊपर 1628 ई. में आक्रमण कर दिया। 1629 ई. में जुझार सिंह ने शाहजहाँ के सामने आत्मसमर्पण कर माफी माँग ली। लगभग 5 वर्ष की मुग़ल वफादरी के बाद जुझार सिंह ने गोंडवाना पर आक्रमण कर वहाँ के शासक प्रेम नारायण की राजधानी ‘चैरागढ़’ पर अधिकार कर लिया। औरंगज़ेब के नेतृत्व में एक विशाल मुग़ल सेना ने जुझार सिंह को परास्त कर भगतसिंह के लड़के देवीसिंह को ओरछा का शासक बना दिया। इस तरह यह विद्रोह 1635 ई. में समाप्त हो गया। चम्पतराय एवं छत्रसाल जैसे महोबा शासकों ने बुन्देलों के संघर्ष को जारी रखा। ख़ानेजहाँ लोदी का विद्रोह (1628-1631 ई.) : पीर ख़ाँ ऊर्फ ख़ानेजहाँ लोदी एक अफ़ग़ान सरदार था। इसे शाहजहाँ के समय में मालवा की सूबेदारी मिली थी। 1629 ई. में मुग़ल दरबार में सम्मान न मिलने के कारण अपने को असुरक्षित महसूस कर ख़ानेजहाँ अहमदनगर के शासक मुर्तजा निज़ामशाह के दरबार में पहुँचा। निज़ामशाह ने उसे ‘बीर’ की जागीरदारी इस शर्त पर प्रदान की, कि वह मुग़लों के क़ब्ज़े से अहमदनगर के क्षेत्र को वापस कर दें। 1629 ई. में शाहजहाँ के दक्षिण पहुँच जाने पर ख़ानेजहाँ को दक्षिण में कोई सहायता न मिल सकी, अतः निराश होकर उसे उत्तर-पश्चिम की ओर भागना पड़ा। अन्त में बाँदा ज़िले के ‘सिंहोदा’ नामक स्थान पर ‘माधोसिंह’ द्वारा उसकी हत्या कर दी गई। इस तरह 1631 ई. तक ख़ानेजहाँ का विद्रोह समाप्त हो गया शाहजहाँ की पहचान : 1. शाहजहॉ की शादी 1612 में नूरजहॉ की भतीजी तथा असाफ खाॅ की पुत्री अरमुन्द बानो बेगम के साथ हुई थी। 2. शाहजहॉ ने अरमुन्द बानो बेगम को मलिका-ए-जामानी की उपाधि प्रदान की थी। 3. अरमुन्द बानो बेगम का ही नाम मुमताज बेगम था। 4. मुमताज बेगम की मृत्यु के बाद शाहजहॉ ने उनकी याद में आगरा में ताजमहल नामक एक सुुन्दर इमारत का निर्माण करवायाथा। 5. यह इमारत मुमताज बेगम की कब्र बनवायी गयी थी। 6. ताजमहल बनाने वाला मुख्य कारीगर उस्ताद अहमद लाहौरी था। 7. मयूर सिंहासन शाहजहॉ ने बनवाया था। 8. इसको बनाने वाला प्रमुख कलाकार बे बादल खॉ था। 9. शाहजहॉ के शासन काल में भयंकर अकाल पडा था। 10. इतिहासकार बी. ए. स्मिथ ने शाहजहॉ के शासनकाल को मुगलकाल का स्वर्ण काल कहा था। 11. शाहजहॉ को निर्माताओं का राजकुमार कहा जाता है। 12. शाहजहॉ द्वारा बनाई गई इमारतें - दिल्ली का लाल किला, दीवाने आम, दीवाने खास, दिल्ली की जामा मस्जिद, आगरा मोतीमस्जिद, ताजमहल आदि थीं। 13. शाहजहॉ ने राजधानी का दिल्ली से आगरा लाने के लिए यमुना नदी के दाहिने तट पर शाहजहॉनाबाद की नींब डाली थी। 14. शाहजहॉ के पुत्रों में दारासिकोह सर्वाधिक विद्वान था। 15. शाहजहॉ के शासन काल में उनकी सुन्तानों के बीच उत्तराधिकारी की लडाई 1657 में प्रारम्भ हो गई थी। 16. शाहजहॉ का 1658 में उनकेे पुत्र औरंगजेब नेे बंदी बना लिया था। 17. इसके बाद शाहजहॉ ने अपने जीवन के अंतिम आठ बर्ष आगरा के किलेे में एक बंदी के रूप में व्यतीत किये थे। 18. शाहजहॉ की मृत्यु 31 जनवरी 1666 को 74 बर्ष की अवस्था में हुई थी। 19. शाहजहॉ के बाद उनका पुत्र औरंगजेब राजगद्दी पर बैठा था।